Sunday 25 March 2018

Thursday 16 March 2017

You are a beautiful stain on the clothes of my life, and I never want you to fade.....

Tuesday 28 February 2017

My intension is not to make my presence noticed..... but it is to make my absence felt :(

Wednesday 15 February 2017

नंदनकानन ज़ू , भुवनेश्वर












400 हेक्टियर में फैला नंदनकानन जू के साथ-साथ बॉटनिकल गार्डन भी है। इसे 1979 में आम लोगों के लिए खोल दिया गया था। यह भुवनेश्वर के सबसे ज्यादा घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों में एक है।
कंजिया झील और चंदका-दंपारा वन्यजीव अभ्यारण्य के हरे-भरे जंगलों के बीच बीच स्थित नंदनकानन जू की प्राकृतिक सुंदरता बेजोड़ है। यहां विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर और कुछ दुर्लभ पेड़-पौधों देखे जा सकते हैं। यहां करीब 126 प्रजाति के जानवर रहते हैं ।

मंदिर की कथा

इतिहासकारों के अनुसार मन्दिर का निर्माण राजा इन्द्रद्विमुना ने कराया। उसे स्वप्न में भगवान ने दर्शन देकर मन्दिर निर्माण की आज्ञा दी थी। उसने मन्दिर का निर्माण तो करवा दिया लेकिन मन्दिर के भीतर रखी जाने वाली प्रतिमाओं के बारे में वह निर्णय नहीं ले सका। ब्राह्मïणों ने कई प्रकार की प्रतिमाओं की स्थापना के सुझाव दिए लेकिन वह संतुष्ट नहीं हुआ।
इसी प्रकार करते-करते कई वर्ष बीत गए लेकिन वह प्रतिमाओं को अन्तिम रूप नहीं दे पाया। एक दिन राजा को पुन: स्वप्न आया और ईश्वर ने उसे निर्र्देश दिया कि वह समुद्र के किनारे-किनारे जाए तो प्रतिमाओं के बारे में निर्णय लेने की राह मिल जाएगी। उसने ऐसा ही किया। राह में एक सन्यासी मिला और उसने कहा कि आगे जाओं दो लोग मिलेंगे जो मूर्ति के निर्माण में तुम्हारी मदद करेंगे। राजा आगे गया तो उसे दो लोग मिले जो पेशे से बढ़ई थे। उन्होंने राजा की इच्छा जानने के बाद मदद का आश्वासन दिया और कहा कि वह एक वृक्ष लाकर उन्हें दे तो वह मूर्ति बना देंगे।
वृक्ष मिलने के बाद उन्होंने राजा से कहा कि वह जाए और जब मूर्ति पूर्ण हो जाएगी तो वह लोग मूर्ति लेकर राजा के पास आ जाएंगे। दिन बीतने लगे लेकिन मूर्तिकार मूर्ति लेकर नहीं आए। काफी समय बीत जाने के बाद भी जब वह नहीं आए तो राजा की बेचैनी बढ़ी और मना करने के बावजूद राजा मूर्तिकारों के घर पहुंच गया। राजा को देखकर मूर्तिकार भड़क गए और आधी अधूरी मूर्ति छोड़कर चले गए।
मूर्ति के हाथ और पैर नहीं बने थे तथा उनका आकार भी समझ में नहीं आ रहा था। राजा को बहुत निराशा हुई और वह राजमहल लौट गया। रात में राज को स्वप्न आया कि जो भी है वह उचित है और इन्हीं मूर्तियों की स्थापना मन्दिर में करा दो। राजा ने मूर्तियों की स्थापना तो करा दी लेकिन उसे भय सता रहा था कि लकड़ी की मूर्तियां अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रहेंगी और उनका क्षरण हो जाएगा। इसके लिए ब्राह्मïणों ने सलाह दी कि प्रत्येक 12 वर्ष बाद मूर्तियों को बदल दिया जाएगा। तब से यह परम्परा चली आ रही है। बारह वर्षों में मूर्तियों को बदल दिया जाता है।


जगन्नाथ पुरी

हिन्दुओं की आस्था का एक केन्द्र भगवान जगन्नाथ की जगन्नाथ पुरी। 10वीं शताब्दी में निर्मित यह प्राचीन मन्दिर चार धामों में से एक धाम है। इस मंदिर में आने वाले लोगों के अंदर भगवान जगन्‍नाथ के प्रति अटूट आस्था देखी जाती है, लेकिन मंदिर के अंदर व आस-पास रहने वाले लोग इस आस्‍था पर हावी होकर गाढ़ी कमाई का खेल खेल रहे हैं।

सच पूछिये तो जगन्नाथ मन्दिर आज पंडों के व्यवसाय का एक माध्यम बनकर रह गया है। देश के विभिन्न हिस्सों से भक्त भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आते हैं लेकिन यहां आकर वह खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। कदम-कदम पर लूट और पण्डों द्वारा पैसों की मांग, मांग नहीं वसूली अधिक लगती है जो भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रही है। आश्चर्य तो इस बात का है कि भगवान जगन्नाथ पर चढ़ाया जाने वाला महाप्रसाद भी बजार में बिक रहा है।